User:Bharatdeep

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== बुध्दिजीवी और ]] भाषा' चन्द किताबें पढ़कर पहुंच जाते हैं ज्ञानियों की महफ़िल में करते हैं अपने ज्ञान का प्रदर्शन बहुत लंबी होती है बहस बुध्दी के तरकश में जितने सरल और कठिन शब्द होते हैं तीर की तरह चलाते हैं जब निष्कर्ष निकालने का समय होता है तब तय करते हैं कि अभी और बहस करेंगे जारी रखेंगें चिन्तन बुध्दी अपनी हो या पराई करते हैं बुध्दिजीवी जैसा प्रदर्शन अपने खोखले अर्थों वाले निरर्थक शब्दों को किसी तरह सजाते हैं सब लोगों को भ्रम जाल में फंसाते हैं कभी नहीं करते आत्ममंथन कुछ किताबों से चुन लिए वाक्य लोगों से सुनकर गढ़ लिए कुछ अपने और कुछ उधार के कथन उस पर ही बरसों तक चलता है उनका प्रहसन शायद इसीलिये कहीं कुछ नया बनता नज़र नहीं आता ज़माना उनके जाल से नहीं निकल पाता है क्योंकि कोई नहीं कर रहा मनन फिर भी उम्मीद है कहीं नयी धारा बहेगी फूलों के तरह नये शब्द खिलेंगे कुछ नये कथन बनेंगे खिलेगा अपनी भाषा का चमन


Deepak bharatdeep